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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
जल ही जीवन हैः इसका संरक्षण जरूरी है।
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज.)
जल हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत ही नहीं अपित संसार की समस्त संस्कृतियों में जल के महत्व का विस्तृत रूप से दिग्दर्शन किया गया है। विशेष रूप से भारत में जल की पवित्रता की व्यापक विवेचना की गई है। जैसेः- गंगा जमुना सरस्वती त्रिवेणी संगम, पुष्कर सरोवर उज्जैन की शिप्रा नदी, हरिद्वार में गंगा नदी, नासिक कुम्भ मेला, द्वारका के कृष्ण मंदिर समुद्रतट, अयोध्या की सरयू नदी तथा गंगा सागर आदि का आध्यात्मिक महत्व सब जल के पवित्रता के महत्व को दर्शाने वाले तीर्थ स्थल ही तो है। पंच -भूत तत्वों मंे जल भी जीवन का एक सारगर्भित तत्व है। जल के देवता वरुण देव का गुनगान तो सिन्धु नदी की महिमा में रचा बसा है। मानसरोवर झील कैलाश पर्वत हिमालय के समस्त तीर्थ जैसे अमरनाथ, केदार नाथ, बद्रीनाथ आदि की महिमा सब जल से जुड़ी भारत दर्शन की सांस्कृतिक विधाएँ हैं।
अतः जल का संरक्षण बहुत जरूरी है। जल है तो कल है। जल संकट की समस्या विश्व के अन्य देशों के साथ भारत में भी बढ़ रही है।
अगर जल का संचयन और संग्रहण उचित तरीके से नहीं किया गया तो मानव जीवन खतरे में पड़ सकता है।
आज तो हालात यह है कि खेती से लेकर पेयजल के लिये भी हमें बाजार का मुँह देखना पड़ रहा है। जल संरक्षण के प्रति सामाजिक जागरूकता अति आवश्यक है। लोगों को जल का सही और सावधानी पूर्वक तरीके से उपयोग करने की आदतें डालनी चाहिए। जल संरक्षण के लिए सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्तर पर कई कदम उठाने चाहिए जैसे कि वर्षा का जल का संचयन और पुनः चक्रण करने के प्रयास। जल संचयन के प्रयासों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग यानि की वर्षा जल के संचयन की तकनीक। घर की छतों पर यह सिस्टम इन्सटॉल करके वर्षा के पानी को संचित कर सकते है। इस संग्रहीत जल का बाद में आवश्यकता के समय उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए स्थानीय सरकारों और समुदायों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इस तकनीक के फायदों की जानकारी देने के संवाद और कैंपेन लगातार आयोजित किये जाने चाहिए। लोगों को बाढ और सूखे जैसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सचेत और आगाह किया जाना चाहिए। हिन्दू धर्म में इन पवित्र नदियों और सरोवरों के जल में स्नान करने का महत्व बताया गया है।
कई देशों ने जल संरक्षण के कड़े कदम उठाये हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रति सकारात्मक नीतियों का सख्ती से पालन करना। जल संरक्षण कानून की स्थापना। इसके लिये विश्वभर में जागरूकता अभियान चलाये जा रहे हैं। जल संचयन तकनीकों का उपयोग बढ़ रहा है। जैसे रेनवाटर हार्वेस्टिंग जल संचयन तालाबों का निर्माण और पानी की पुनर्चक्रण प्रक्रिया। पानी की सही और दोबारा उपयोग की बढ़ती मांग के साथ, जल की साइकिलिंग और पुनर्चक्रण के प्रक्रियाओं का विकास हो रहा है। जल संरक्षण के प्रोजेक्ट्स में स्थानीय समुदाओं को शामिल करने का प्रयास हो रहा है। उनकी भागीदारी से सामाजिक आर्थिक सुधार हो सके। विज्ञान और तकनीक के नवाचारों का उपयोग जल संरक्षण में हो रहा है जैसे जल संरक्षण के साथ साथ जल प्रदूषण के खतरों से आगाह किया जाना। प्रदूषण के नये खतरों से सावधान करना आदि। इस कार्य में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग भी बढ़ रहा है जैसे जल संचयन और जल प्रबन्धन के लिये साथियों के बीच में जानकारी और तकनीकी ज्ञान का साझा करना। ये सभी प्रयास विश्वभर में जल संरक्षण को बढ़ावा देने में मददगार है और साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिये एक सुरक्षित और स्वस्थ जल संसाधन की रक्षा करते हैं।
अपने दैनिक कार्यों में सजगता और समझदारी से भी पानी का उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है। जैसे घर का नल खुला न छोड़ना, साफ-सफाई आदिकार्य के लिये खारे जल का उपयोग करना नहाने के लिये उपकरणों के बजाय साधारण बाल्टी आदि का इस्तेमाल करना। लोगों के सोच में जल के उपयोग में संरक्षण बरतने के प्रति सोच में बदलाव करने की जरूरत है।
दुनियां के तमाम देशों का दायित्व है जहाँ जल स्तर बराबर गिरता जा रहा है कि वे अपने देश के नागरिकों को जल संरक्षण के प्रति सावधान करें। इस मामले में गम्भीरता बरतने की जरूरत है। इसके लिये न सिर्फ राष्ट्र स्तर पर बल्कि विश्व स्तर पर घटते हुए जल स्तर के भयावहता के प्रति आगाह करते हुए जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिये, जिससे जल समस्या की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हो जिससे वे इस समस्या को समझते हुए सजग हो सकें।
ठोस योजना के तहत घटते हुए जल संरक्षण एक विचार नहीं आज के वक्त की जरूरत है। इस समस्या को गम्भीरता से सोचना होगा। इस विषय पर सद्भावनापूर्ण मनन करके लोगों को समझाइस कर ही इस मुद्दे को हल किया जा सकता है। कानून कायदों से यह समस्या हल होने वाली नहीं है। अतः जागरूकता के जरिये ही इसे हल किया जाना चाहिये। आज प्रौद्यौगिकी बहुत विकसित हो गई है, लेकिन पानी और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव नदारत दिखता है। जल संसाधनों के गैर जिम्मेदाराना दोहन की वजह से हम एक. बड़े संकट की ओर बढ़ रहे हैं। इसी के मध्य नजर जल विशेषज्ञों ने जल संकट की चेतावनी देते हुए कहा है कि पानी की कमी को पूरे विश्व में भविष्य के संकट के रूप में देखा जा रहा है।
18.09.2023
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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